मैं और तुम *ग़ज़ल* अब तस्व्वर में कोई आता नहीं इश | हिंदी शायरी

"मैं और तुम *ग़ज़ल* अब तस्व्वर में कोई आता नहीं इश्क़ का गुल कोई खिलाता नहीं इश्क़ तो करते हैं सभी लेकिन इश्क़ हरगिज़ कोई निभाता नहीं मुंकिरे इश्क़ होके भी आदम इश्क़ करने से बाज़ आता नहीं अब तफ़क्कुर करेंगे हम किस की फ़िक्र में जब कोई भी आता नहीं ज़ब्त आशिक़ का इश्क़ में देखो ज़ख्म सहता है पर दिखाता नहीं हो गया इश्क़ जिस को भी *अरशद* उसको देखा है मुस्कुराता नहीं *अरशद अंसारी फतेहपुर* mohammadarshad17338@gmail.com"

 मैं और तुम *ग़ज़ल*

अब तस्व्वर में कोई आता नहीं
इश्क़ का गुल कोई खिलाता नहीं

इश्क़ तो करते हैं सभी लेकिन
इश्क़ हरगिज़ कोई निभाता नहीं

मुंकिरे इश्क़ होके भी आदम
इश्क़ करने से बाज़ आता नहीं

अब तफ़क्कुर करेंगे हम किस की
फ़िक्र में जब कोई भी आता नहीं

ज़ब्त आशिक़ का इश्क़ में देखो
ज़ख्म सहता है पर दिखाता नहीं

हो गया इश्क़ जिस को भी *अरशद*
उसको देखा है मुस्कुराता नहीं

*अरशद अंसारी फतेहपुर*
mohammadarshad17338@gmail.com

मैं और तुम *ग़ज़ल* अब तस्व्वर में कोई आता नहीं इश्क़ का गुल कोई खिलाता नहीं इश्क़ तो करते हैं सभी लेकिन इश्क़ हरगिज़ कोई निभाता नहीं मुंकिरे इश्क़ होके भी आदम इश्क़ करने से बाज़ आता नहीं अब तफ़क्कुर करेंगे हम किस की फ़िक्र में जब कोई भी आता नहीं ज़ब्त आशिक़ का इश्क़ में देखो ज़ख्म सहता है पर दिखाता नहीं हो गया इश्क़ जिस को भी *अरशद* उसको देखा है मुस्कुराता नहीं *अरशद अंसारी फतेहपुर* mohammadarshad17338@gmail.com

अब तस्व्वर में कोई आता नहीं
इश्क़ का गुल कोई खिलाता नहीं

इश्क़ तो करते हैं सभी लेकिन
इश्क़ हरगिज़ कोई निभाता नहीं

मुंकिरे इश्क़ होके भी आदम
इश्क़ करने से बाज़ आता नहीं

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