वो पुरानी साईकल से शुरू हुआ सफर बड़ी गाड़ियों तक पहु | हिंदी Poetry

"वो पुरानी साईकल से शुरू हुआ सफर बड़ी गाड़ियों तक पहुंच चुका है पर वो अब भी चप्पलें डाल कहीं भी पैदल चल लेते हैं वो मानते क्यों नहीं गरीबी जा चुकी है अब भी वो अपने कपड़े नहीं बदलते हम चार पैसे आने के बाद अपनी फितरत बदल लेते हैं कहीं बाहर जाने से पहले जेब मे जबरन पैसे डालते हैं मैं कमा रहा हूँ ना पिताजी बोलूं तो आंखें निकालते हैं छाती चौड़ी तो होती है पर जताते नहीं हैं खुद की ज़रूरतें किसी को बताते नहीं हैं स्वाभिमान उनके लिए सबसे बड़ा है चिंता पहुंच नहीं पाती परिवार में जब तक पिता खड़ा है ©Dr Ziddi Sharma"

 वो पुरानी साईकल से शुरू हुआ सफर
बड़ी गाड़ियों तक पहुंच चुका है
पर वो अब भी चप्पलें डाल कहीं भी पैदल चल लेते हैं
वो मानते क्यों नहीं गरीबी जा चुकी है 
अब भी वो अपने कपड़े नहीं बदलते 
हम चार पैसे आने के बाद अपनी फितरत बदल लेते हैं
कहीं बाहर जाने से पहले जेब मे जबरन पैसे डालते हैं
मैं कमा रहा हूँ ना पिताजी बोलूं तो आंखें निकालते हैं
छाती चौड़ी तो होती है पर जताते नहीं हैं
खुद की ज़रूरतें किसी को बताते नहीं हैं
स्वाभिमान उनके लिए सबसे बड़ा है
चिंता पहुंच नहीं पाती परिवार में 
जब तक पिता खड़ा है

©Dr Ziddi Sharma

वो पुरानी साईकल से शुरू हुआ सफर बड़ी गाड़ियों तक पहुंच चुका है पर वो अब भी चप्पलें डाल कहीं भी पैदल चल लेते हैं वो मानते क्यों नहीं गरीबी जा चुकी है अब भी वो अपने कपड़े नहीं बदलते हम चार पैसे आने के बाद अपनी फितरत बदल लेते हैं कहीं बाहर जाने से पहले जेब मे जबरन पैसे डालते हैं मैं कमा रहा हूँ ना पिताजी बोलूं तो आंखें निकालते हैं छाती चौड़ी तो होती है पर जताते नहीं हैं खुद की ज़रूरतें किसी को बताते नहीं हैं स्वाभिमान उनके लिए सबसे बड़ा है चिंता पहुंच नहीं पाती परिवार में जब तक पिता खड़ा है ©Dr Ziddi Sharma

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