आदत सा कहीं हो न जाए
मेरा हर काम तुम पर न पड़ जाए
मैं अपने ही लक्ष्य से भटक न जाऊं
मेरा हर लक्ष्य तुम पर न आ जाए
कहीं यह साथ
वक्त के छाव में धूमील न हो जाए
मै तुम्हे पुकारते रहूं
कहीं मेरी यह पुकार बेघर न हो जाए
कहीं मै इस तारो भरी महफ़िल में
अकेली चांदनी सी न रह जाऊं
©कंचन
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