ग़ज़ल :-
प्यार में मनमर्जियाँ अच्छी लगे ।
मिल गले सरगोशियाँ अच्छी लगे ।।१
यार बिन कुछ भी नहीं भाता मुझे ।
गम कि फिर तंहाइयाँ अच्छी लगे ।।२
आ सँवरकर सामने मेरे कभी ।
मुझको तेरी शोखियाँ अच्छी लगे ।।३
सुर्ख कर लो होंठ ये मेरे लिए ।
तुझ पे ही ये सुर्खियाँ अच्छी लगे ।।४
आ रही घर में हमारे फिर खुशी ।
मेम को अब इमलियाँ अच्छी लगे ।।५
एक अच्छा नाम अब मैं सोच लूँ ।
मुझको देखो बेटियाँ अच्छी लगे ।।६
ढ़ल रही है ये जवानी अब प्रखर ।
अब न वो गुस्ताखियाँ अच्छी लगे ।।७
१०/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
प्यार में मनमर्जियाँ अच्छी लगे ।
मिल गले सरगोशियाँ अच्छी लगे ।।१