हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं ।
मुहब्बत को बस एक भरम जानते हैं ।
मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ ,
थकान मेरी , मेरे क़दम जानते हैं ।
हमें भूल जाने की आदत है लेकिन,
तुम्हे , हम , तुम्हारी क़सम जानते हैं ।
ये छुपना कहाँ और ये बहना कहाँ है,
ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं ।
आशु छलकती है क्यों आँख से हमको पता है ,
कहाँ सब लोग यु बिछड़ने का ग़म जानते हैं ।
दिया तो है मजबूर कैसे बताये
उजालों की तकलीफ तो हम जानते हैं
है जो भी कुछ हमें इस जहाँ में
हम उसको खुदा का करम जानते हैं।
©Shivkumar
#relaxation
#हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं ।
#मोहब्बत को बस एक भरम जानते हैं ।
मैं क्या इसके बारे में #मंज़िल से पूछूँ ,
#थकान मेरी , मेरे #क़दम जानते हैं ।