राह से भटका हुआ राही सा लग रहा हूं,
दिन तो बीत जाते मगर थोड़ी रात भी जग रहा हूं,
धूमिल पड़े इस जहां में, थोड़ी चमक तो दे दो,
तेरे दर पे सिर झुकाकर, विनती मै कर रहा हूं...
©Shivam vishwakarma
MERI kavitayen
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