है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में तो बेवजह हंसता | हिंदी Shayari

"है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में तो बेवजह हंसता क्यों है, कर नहीं सकता बयां दर्द अपना, तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा, खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है, वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा, तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है, "जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!"

 है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में 
तो बेवजह हंसता क्यों है, 
कर नहीं सकता बयां दर्द अपना,
 तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है 

किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा,
खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है,

वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा,
तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है,

"जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा 
 उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में तो बेवजह हंसता क्यों है, कर नहीं सकता बयां दर्द अपना, तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा, खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है, वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा, तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है, "जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Apocalypse

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