White जब तेरे ख़त सिरहाने रखते हैं,
लगता है जैसे खज़ाने रखते हैं।
तुमको तन्हा चलने की आदत क्यों,
हम तो साथ अपने ज़माने रखते हैं।
उसकी बेरूखी का ग़म नहीं होता,
दिल को बहलाने के बहाने रखते हैं।
हमको नहीं गरज किसी मयख़ाने की,
आंखों में अश्कों के पैमाने रखते हैं।
अब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे गुलाबों में अफ़साने रखते हैं।
कभी तो मिलेगा 'आस' का मुकाम,
यही सोचकर सीने में उड़ानें रखते हैं।
©दीपबोधि
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