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पीर पलक पे पिरोना था,
तब आँखों से रोना था।
आँखों से ना बात बने,
दिल से दर्द चुभोना था।
ज़ख्मों को लिखता कैसे,
खूँ में कलम डुबोना था।
यूँ ही नींद नहीं आती,
लात लँबाकर सोना था।
दाग नहीं धुलते 'बल' से,
निर्मल जल से धोना था।
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©JUGNU RAHI
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