नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ, बाल बनाऊँ किस के लिये, | हिंदी शायरी

"नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ, बाल बनाऊँ किस के लिये, वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया,मैं बाहर जाऊँ किस के लिये, जिस धूप की दिल को ठंडक थी,वो धूप उसी के साथ गई, इन जलती वलती गलियों में,अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये, वो शहर में था तो उस के लिये,औरों से मिलना पड़ता था, अब ऐसे-वैसे लोगों के,मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये.... ©Mansoor Mansuri ✍"

 नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ,
बाल बनाऊँ किस के लिये,
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया,मैं बाहर जाऊँ किस के लिये,

जिस धूप की दिल को ठंडक थी,वो धूप उसी के साथ गई,
इन जलती वलती गलियों में,अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये,

वो शहर में था तो उस के लिये,औरों से मिलना पड़ता था,
अब ऐसे-वैसे लोगों के,मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये....

©Mansoor Mansuri ✍

नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ, बाल बनाऊँ किस के लिये, वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया,मैं बाहर जाऊँ किस के लिये, जिस धूप की दिल को ठंडक थी,वो धूप उसी के साथ गई, इन जलती वलती गलियों में,अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये, वो शहर में था तो उस के लिये,औरों से मिलना पड़ता था, अब ऐसे-वैसे लोगों के,मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये.... ©Mansoor Mansuri ✍

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