कृष्ण लीला (भाग - 1)
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सुनो धरा पुकार करे , बढ़ा पाप का भार ।
आओ फिर इक बार प्रभु, धरो आप अवतार।।1।।
हानि धर्म की जब हुई , बढ़ा धरा पर पाप ।
तब मानव के रूप में, प्रभु जी जन्मे आप।।2।।
अत्याचारी कंस ने, जब जानी ये बात।
कारा गृह में डाल कर,किया बहन से घात।।
किया बहन से घात, सुनकर आकाशवाणी।
दुखी हुए सब लोग, दुखी थे सारे प्राणी।।
लेगे फिर अवतार, कृष्ण हैं पालनहारी।
होगा इसका नाश, कंस है अत्याचारी।।1।।
धर्म की रक्षा के लिए, लेते प्रभु अवतार।
यह क्रम तो चलता रहे, जग में बारंबार।।3।।
धर्म नाम पर आज कल, लगता है बाजार।
धर्म नाम पर कर रहे, देखो सब व्यापार।। 4।।
©Uma Vaishnav
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