11 नंबर की बस। बहते चलते लंबे पथ पे, फर्राटा भर्त | हिंदी कविता

"11 नंबर की बस। बहते चलते लंबे पथ पे, फर्राटा भर्ती देखो दुनिया छुप रही है। किसी ने पेट्रोल डीजल सीएनजी तो किसी ने 11 नंबर की बस पकड़ रखी है जिसके पास नहीं है देने को सेल्फी उसने सड़क की फुटपाथ जकड़ रखी है हाथों में बैग,संदूक और दूजे हाथ में रोटी का टिफन तन से बच्चों को बांध रखा है पल्लू से अपने तपती धूप से चांद की चांदनी में संघर्ष आंखों से बहता पैरों के छाले बिन चप्पल चले जा रहे हैं। रोड़ी पत्थर कंकड़ सभी जानते हैं उसके हाथों की थाप शायद इसलिए उनके पैरों के नीचे बिछते जा रहे हैं । चढ़ा ज़िन्दगी के साथ बीच मझधार में शरीर को मुर्दा बोलकर रेल से निकालकर स्टेशन पर लिटाया जा रहा है बेअश्क होकर खींच रहा है बालक उसका महज़ जो चार साल के अंदर दो महीने भूख से सताया हुआ है। कुत्ते की तरह हफ्ते इंसान को बस,रेल के नीचे आराम करते बताया जा रहा है। कितनी सच्चाई है, इश्तेहार के आखबरो में की सुनसान सड़क पे पत्तों का पत्त झड़ गर्म हवाओं से काबू में है। जिन्होंने सवारी कर रखी है 11 नंबर के बस की मका तक जाने को उनके बहते लंबे पथ ने कुछ और ही तैयारी कर रखी है।"

 11 नंबर की बस।

बहते चलते लंबे पथ पे,
फर्राटा भर्ती देखो दुनिया छुप रही है।
किसी ने पेट्रोल डीजल सीएनजी
तो किसी ने 11 नंबर की बस पकड़ रखी है
जिसके पास नहीं है देने को सेल्फी 
उसने सड़क की फुटपाथ जकड़ रखी है
हाथों में बैग,संदूक और दूजे हाथ में रोटी का टिफन
तन से बच्चों को बांध रखा है पल्लू से अपने 
तपती धूप से चांद की चांदनी में संघर्ष आंखों से बहता 
पैरों के छाले बिन चप्पल चले जा रहे हैं।
रोड़ी पत्थर कंकड़ सभी जानते हैं उसके हाथों की थाप 
शायद इसलिए उनके पैरों के नीचे बिछते जा रहे हैं ।
चढ़ा ज़िन्दगी के साथ बीच मझधार में शरीर को मुर्दा 
बोलकर रेल से निकालकर स्टेशन पर लिटाया जा रहा है
बेअश्क होकर खींच रहा है बालक उसका
महज़ जो चार साल के अंदर दो महीने भूख से सताया हुआ है। 
कुत्ते की तरह हफ्ते इंसान को बस,रेल के नीचे आराम करते बताया जा रहा है।
कितनी सच्चाई है, इश्तेहार के आखबरो में 
की सुनसान सड़क पे पत्तों का पत्त झड़ गर्म हवाओं से काबू में है। 
जिन्होंने सवारी कर रखी है 11 नंबर के बस की मका तक जाने को
उनके बहते लंबे पथ ने कुछ और ही तैयारी कर रखी है।

11 नंबर की बस। बहते चलते लंबे पथ पे, फर्राटा भर्ती देखो दुनिया छुप रही है। किसी ने पेट्रोल डीजल सीएनजी तो किसी ने 11 नंबर की बस पकड़ रखी है जिसके पास नहीं है देने को सेल्फी उसने सड़क की फुटपाथ जकड़ रखी है हाथों में बैग,संदूक और दूजे हाथ में रोटी का टिफन तन से बच्चों को बांध रखा है पल्लू से अपने तपती धूप से चांद की चांदनी में संघर्ष आंखों से बहता पैरों के छाले बिन चप्पल चले जा रहे हैं। रोड़ी पत्थर कंकड़ सभी जानते हैं उसके हाथों की थाप शायद इसलिए उनके पैरों के नीचे बिछते जा रहे हैं । चढ़ा ज़िन्दगी के साथ बीच मझधार में शरीर को मुर्दा बोलकर रेल से निकालकर स्टेशन पर लिटाया जा रहा है बेअश्क होकर खींच रहा है बालक उसका महज़ जो चार साल के अंदर दो महीने भूख से सताया हुआ है। कुत्ते की तरह हफ्ते इंसान को बस,रेल के नीचे आराम करते बताया जा रहा है। कितनी सच्चाई है, इश्तेहार के आखबरो में की सुनसान सड़क पे पत्तों का पत्त झड़ गर्म हवाओं से काबू में है। जिन्होंने सवारी कर रखी है 11 नंबर के बस की मका तक जाने को उनके बहते लंबे पथ ने कुछ और ही तैयारी कर रखी है।

11 नंबर की बस।

बहते चलते लंबे पथ पे,
फर्राटा भर्ती देखो दुनिया छुप रही है।
किसी ने पेट्रोल डीजल सीएनजी
तो किसी ने 11 नंबर की बस पकड़ रखी है
जिसके पास नहीं है देने को सेल्फी
उसने सड़क की फुटपाथ जकड़ रखी है

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