कितनी परछाईयाँ उभरती है
इस रोशनी में
कुछ तेरी कुछ मेरी
जो अक्सर याद दिलाती हैं
उलझन वो तेरी और मेरी,
कभी आगे मैं कभी आगे तू
इस भगदड़ की दौड़ में
कभी पीछे मैं कभी पीछे तू
सोचा था इस घर में
तेरा मेरा कुछ ना होगा सब हमारा होगा,
प्रतिद्वंदी ना होकर जीवन अपना एक होगा,
मगर ऐ राही इस भगदड़ की दौड़ में सब पीछे छूट गया
ये परछाईयाँ उभरती है
इस रौशनी में देखो कितना कुछ बोलती है,
उलझन वो तेरी उलझन वो मेरी ✍️ एक होगा,
मगर ऐ राही इस भगदड़ की दौड़ में सब पीछे छूट गया
ये परछाईयाँ उभरती है
इस रौशनी में देखो कितना कुछ बोलती है,
उलझन वो तेरी उलझन वो मेरी - ✍️ @भारद्वाज_shubhi
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