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कुछ तो है जो यहाँ अधूरा है
पूछे किससे कहाँ अधूरा है
जो बना भी नहीं ज़मां मेरा
उस ज़मी पर मक़ां अधूरा है
तू नहीं तो कहाँ रहूँ जाके
ये जहाँ तो मेरा अधूरा है
दूर जाना नहीं कभी मुझसे
हमनवा हमरहां अधूरा है
इक तु ही है जिसे तुने जाना
मानता तू भी क्या अधूरा है
याद रखता है याद आता है
मेरा होके वहाँ अधूरा है
बात हर इक "ज़ुबैर" पर आए
कहने को क्या तेरा अधूरा है
लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️
©SZUBAIR KHAN KHAN
Adhura