कहते हैं, तो कहने दो, यार थोड़ी है... मुकम्मल नहीं
"कहते हैं, तो कहने दो, यार थोड़ी है...
मुकम्मल नहीं हुआ तो ना सही प्यार थोड़ी है...
तुम लड़ते रहे उम्र भर अपने सपनों से, हार थोड़ी है...
ये ज़िंदगी जैसी भी कटी कटने दो गुलज़ार थोड़ी है..."
कहते हैं, तो कहने दो, यार थोड़ी है...
मुकम्मल नहीं हुआ तो ना सही प्यार थोड़ी है...
तुम लड़ते रहे उम्र भर अपने सपनों से, हार थोड़ी है...
ये ज़िंदगी जैसी भी कटी कटने दो गुलज़ार थोड़ी है...