White देख कर एकांत बीच रण अभिमन्यु वो ,
चला वीर बाल मान सत्य को बढ़ाने हैं..
गर्व-वश अट्टहास लगाता दुर्योधन तो,
बोले मुग्ध मन पार्थ साथ खेवनहार जी खड़े हैं...
मैं करूं व्यर्थ चिंता चित्त भार से भरूं क्यों,
जब पालन को मेरे पालनहार संग चले हैं...
धन-धान्य मान सबका करूं मैं पर,
आत्म मार्ग ही मेरे आन ये खड़े हैं...
धन्य मैं प्रभु जी जन्म मानस को पाया जो,
भक्त संग आज स्वयं राधेश जी मिले हैं...
कुल, वंश, गुरु, संबद्ध स्वीकारूं सभी,
किन्तु धर्म मार्ग आड़े सखे सारे ही अड़े हैं..
विपदा है भारी कुछ करो तो कान्हाई जी,
थाम उंगली ले चलो बस मार्ग जो सही है....
विनती नादान की ना ठुकराओ लला जी सुनो,
तारण को तारणहार संग श्री वृंदा भी खड़ी हैं..
लोभ, मोह चंचल इस जग की घनी भारी जी,
अज्ञानी प्राणी कहो पार कैसे अब करे हैं...
दाता हे दानी जग के हो विधाता तुम्हीं,
कर दान कल्याण जन जन का करें हैं..।
जैसे संग अर्जुन के बन सखा हो रहे सदा,
धरो शीश हाथ रहोगे तुम्हें बस शपथ यही है।
©Sonam Verma
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