जनमत :-  कुण्डलिया जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थ | हिंदी कविता

"जनमत :-  कुण्डलिया जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप । इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।। मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा । छोड़ रहे सब साथ , दलों का वारा न्यारा ।। ऊब गये थे लोग , देखकर तेरी हरकत । अब तुम देखो स्वप्न , मिले फिर हमको जनमत ।। जनमत का हक आपने , खाकर लिया डकार । कभी पलट बाँटा नही , जनता में वह प्यार ।। जनता में वह प्यार , न थी कोई मजबूरी । रखा स्वार्थ भर चाव , यही कारण है दूरी ।। और बताते आज , यहाँ पर हमको हिकमत । जाओ बाबू आप , फैसला है ये जनमत ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 जनमत :-  कुण्डलिया

जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप ।
इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।।
मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा ।
छोड़ रहे सब साथ , दलों का वारा न्यारा ।।
ऊब गये थे लोग , देखकर तेरी हरकत ।
अब तुम देखो स्वप्न , मिले फिर हमको जनमत ।।

जनमत का हक आपने , खाकर लिया डकार ।
कभी पलट बाँटा नही , जनता में वह प्यार ।।
जनता में वह प्यार , न थी कोई मजबूरी ।
रखा स्वार्थ भर चाव , यही कारण है दूरी ।।
और बताते आज , यहाँ पर हमको हिकमत ।
जाओ बाबू आप , फैसला है ये जनमत ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

जनमत :-  कुण्डलिया जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप । इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।। मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा । छोड़ रहे सब साथ , दलों का वारा न्यारा ।। ऊब गये थे लोग , देखकर तेरी हरकत । अब तुम देखो स्वप्न , मिले फिर हमको जनमत ।। जनमत का हक आपने , खाकर लिया डकार । कभी पलट बाँटा नही , जनता में वह प्यार ।। जनता में वह प्यार , न थी कोई मजबूरी । रखा स्वार्थ भर चाव , यही कारण है दूरी ।। और बताते आज , यहाँ पर हमको हिकमत । जाओ बाबू आप , फैसला है ये जनमत ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

जनमत :- 


जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप ।

इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।।

मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा ।

People who shared love close

More like this

Trending Topic