जनमत :- कुण्डलिया
जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप ।
इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।।
मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा ।
छोड़ रहे सब साथ , दलों का वारा न्यारा ।।
ऊब गये थे लोग , देखकर तेरी हरकत ।
अब तुम देखो स्वप्न , मिले फिर हमको जनमत ।।
जनमत का हक आपने , खाकर लिया डकार ।
कभी पलट बाँटा नही , जनता में वह प्यार ।।
जनता में वह प्यार , न थी कोई मजबूरी ।
रखा स्वार्थ भर चाव , यही कारण है दूरी ।।
और बताते आज , यहाँ पर हमको हिकमत ।
जाओ बाबू आप , फैसला है ये जनमत ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
जनमत :-
जनमत की बाते कभी , सुने नहीं थे आप ।
इसीलिए तो आपको , मिला आज संताप ।।
मिला आज संताप , दोष ये रहा तुम्हारा ।