White मेला : जिंदगी का आज फिर से कुछ बोलना है फिर | हिंदी कविता

"White मेला : जिंदगी का आज फिर से कुछ बोलना है फिर से आज दिल खोलना है बंदिशों को तोड़ते हुए आज मुझे फिर से कुछ बोलना है बिना नाप तोल के आज रिश्तों के नये धागे की एक नई पहचान को हंसते मुस्कुराते हुए जोड़ना है क्यूंकि ये मेला है हां बिल्कुल ये एक मेला है मेला है खूशी का मेला है जिंदगी का और इस मेले में आज हर कोई हो रहा है शरीक होते है यहां रंग बिरंगी किस्से उन किस्सों की कहानियों में उन बातों में छुपी होती है नई बात जिंदगी के इस मेले में कहीं पे बिकती है खुशियां तो कहीं पे होती पूरी मुराद चल रहा है आज हर कोई उमंग लिए दिल में हर पल साथ बिछड़ जाते हैं कईं हाथ और छूट जाते हैं कईं साथ मगर फिर भी जिंदगी के इस मेले में उम्मीदों का दामन थामे चल रहें हैं साथ मैं कहता आज फिर एक बात आखिर क्यूं रहना है गुमसुम-चुपचाप हंसते खेलते गुजारो हसीन पलों की सौगात चार दिन की जिंदगी में हर पल सब रहे साथ जिंदगी के इस मेले को मैं खुद भी जी रहा हूं चलता जा रहा हूं मैं मुसलसल इक ठहराव की "जिज्ञासा"में या किसी बदलाव की "प्रतीक्षा" में मीठी मुस्कान लिए मैं जिंदगी के इस मेले में तेज बहाव के संग बस बहता जा रहा हूं ©Gaurav Soni"

 White मेला : जिंदगी का

आज फिर से कुछ बोलना है
फिर से आज दिल खोलना है
बंदिशों को तोड़ते हुए
आज मुझे फिर से कुछ बोलना है
बिना नाप तोल के
आज रिश्तों के नये धागे की
एक नई पहचान को
हंसते मुस्कुराते हुए जोड़ना है
क्यूंकि ये मेला है
हां बिल्कुल ये एक मेला है
मेला है खूशी का
मेला है जिंदगी का
और इस मेले में आज 
हर कोई हो रहा है शरीक
होते है यहां रंग बिरंगी किस्से
उन किस्सों की कहानियों में
उन बातों में छुपी होती है नई बात
जिंदगी के इस मेले में
कहीं पे बिकती है खुशियां
तो कहीं पे होती पूरी मुराद
चल रहा है आज हर कोई
उमंग लिए दिल में हर पल साथ
बिछड़ जाते हैं कईं हाथ
और छूट जाते हैं कईं साथ
मगर फिर भी जिंदगी के इस मेले में
उम्मीदों का दामन थामे चल रहें हैं साथ
मैं कहता आज फिर एक बात
आखिर क्यूं रहना है गुमसुम-चुपचाप
हंसते खेलते गुजारो हसीन पलों की सौगात
चार दिन की जिंदगी में हर पल सब रहे साथ
जिंदगी के इस मेले को
मैं खुद भी जी रहा हूं 
चलता जा रहा हूं मैं मुसलसल
इक ठहराव की "जिज्ञासा"में
या किसी बदलाव की "प्रतीक्षा" में
मीठी मुस्कान लिए मैं 
जिंदगी के इस मेले में
तेज बहाव के संग बस बहता जा रहा हूं

©Gaurav Soni

White मेला : जिंदगी का आज फिर से कुछ बोलना है फिर से आज दिल खोलना है बंदिशों को तोड़ते हुए आज मुझे फिर से कुछ बोलना है बिना नाप तोल के आज रिश्तों के नये धागे की एक नई पहचान को हंसते मुस्कुराते हुए जोड़ना है क्यूंकि ये मेला है हां बिल्कुल ये एक मेला है मेला है खूशी का मेला है जिंदगी का और इस मेले में आज हर कोई हो रहा है शरीक होते है यहां रंग बिरंगी किस्से उन किस्सों की कहानियों में उन बातों में छुपी होती है नई बात जिंदगी के इस मेले में कहीं पे बिकती है खुशियां तो कहीं पे होती पूरी मुराद चल रहा है आज हर कोई उमंग लिए दिल में हर पल साथ बिछड़ जाते हैं कईं हाथ और छूट जाते हैं कईं साथ मगर फिर भी जिंदगी के इस मेले में उम्मीदों का दामन थामे चल रहें हैं साथ मैं कहता आज फिर एक बात आखिर क्यूं रहना है गुमसुम-चुपचाप हंसते खेलते गुजारो हसीन पलों की सौगात चार दिन की जिंदगी में हर पल सब रहे साथ जिंदगी के इस मेले को मैं खुद भी जी रहा हूं चलता जा रहा हूं मैं मुसलसल इक ठहराव की "जिज्ञासा"में या किसी बदलाव की "प्रतीक्षा" में मीठी मुस्कान लिए मैं जिंदगी के इस मेले में तेज बहाव के संग बस बहता जा रहा हूं ©Gaurav Soni

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