पामाल हो ना जाएं कहीं जी हुज़ूर में
हाकिम सुरूर में हैं मुलाज़िम गुरूर में।
हैरत है कायनात के मुंसिफ को ना दिखा
अंतर कुसूरवार में और बेकुसूर में ।
कल रात एक गरीब कि बिटिया चली गई
साहब जी अब भी मौन हैं अपने फ़ितूर में।
काहे का रामराज औ कैसा निज़ाम-ए-नौ
लो खुल के ये भी आ गए अपने शुऊर में ।
- Ambrish
पामाल: Ruin मुंसिफ: Magistrate फ़ितूर: Obsession
निज़ाम-ए-नौ: New system (government)
शुऊर: Perception, Consciousness
©Ambrish Thakur
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