रोज़ एक नया मुखौटा पहन औरों का भरमाता था, अपना चेह | हिंदी Shayari

"रोज़ एक नया मुखौटा पहन औरों का भरमाता था, अपना चेहरा भूल गया, अपनी शक्सियत खो बैठा । - गौरव सिन्हा"

 रोज़ एक नया मुखौटा पहन औरों का भरमाता था,
अपना चेहरा भूल गया, अपनी शक्सियत खो बैठा ।
- गौरव सिन्हा

रोज़ एक नया मुखौटा पहन औरों का भरमाता था, अपना चेहरा भूल गया, अपनी शक्सियत खो बैठा । - गौरव सिन्हा

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