ग़ज़ल:-
हर कली पे निखार देखा है ।
बाद पतक्षड़ बहार देखा है ।।
देखकर और बढ़ गई चाहत ।
दिल पे ऐसा खुमार देखा है ।।
यार उनके करीब क्यों जाऊँ ।
जिनमें सबने ही खार देखा है ।।
हैसियत में नही कोई इनके ।
इनका ऊँचा बाजार देखा है ।।
जिसने की है गुलाब से चाहत ।
उनको ही तार तार देखा है ।।
जब भी तेरी गली से मैं गुजरा ।
हाथ फूलों का हार देखा है ।।
ज़िन्दगी बन जाओ प्रखर मेरी ।
मैने तुम में ही प्यार देखा है ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
हर कली पे निखार देखा है ।
बाद पतक्षड़ बहार देखा है ।।
देखकर और बढ़ गई चाहत ।
दिल पे ऐसा खुमार देखा है ।।