क्यों खुद को हर मसलों में उलझाते चले जो जैसे हैं व

"क्यों खुद को हर मसलों में उलझाते चले जो जैसे हैं वैसे साथ निभाते चलें मासूमियत को तोड़ देती हैं जमना बहुत अंदर तक खुद को हंसते और हंसाते चले हमसाया ही चला अक्सर दूरतलक रूह के संग कदम से कदम बढाते चलें । ©Bhavesh Kishalay"

 क्यों खुद को हर मसलों में उलझाते चले
जो जैसे हैं वैसे साथ निभाते चलें
मासूमियत को तोड़ देती हैं जमना
बहुत अंदर तक 
खुद को हंसते और हंसाते चले
हमसाया ही चला अक्सर दूरतलक
रूह के संग कदम से कदम बढाते चलें ।

©Bhavesh Kishalay

क्यों खुद को हर मसलों में उलझाते चले जो जैसे हैं वैसे साथ निभाते चलें मासूमियत को तोड़ देती हैं जमना बहुत अंदर तक खुद को हंसते और हंसाते चले हमसाया ही चला अक्सर दूरतलक रूह के संग कदम से कदम बढाते चलें । ©Bhavesh Kishalay

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