"देखा है मैंने अक्सर यही होता है प्यार में।
लूट जाता है कोई तो कोई लुट जाता है एतबार में।।
गुम से हो जाते हैं जैसे होश,ओ,हवास ही सारे।
बने दीवाने फिरते हैं फिर वो सरे बाज़ार में।।
कभी जो हँस मिलते थे आज गुमसुम से रहते हैं।
छोड़ कर महफ़िलें सारी वो तन्हाई में बैठे हैं।।
वजह गर पूछ ले कोई तो मुंह से कुछ नहीं कहते।
लिए एक इंतज़ार आँखों में मुस्कुराते ही रहते हैं।।
जब कहते हैं जहां वाले कि ये तोहफ़ा खुदा का है।
फिर फकत दर्द ही क्यूं मिलता है सभी को प्यार में।।
देखा है...................एतबार में।।
©अभिलाष द्विवेदी (अकेला ) एक अनपढ़ शायर
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