बोलना मना जख्म दिखाने की मनाही है
सिसकती रहती है रूह ये कैसी आजादी है
पैरों मे बेड़ियाँ नहीं मगर नजरों की पहरेदारी है
पर कटे हुए है ये कैसी आजादी है
अपने बारे मे भी मैं फैसला न कर सकूँ
किसी और के हाथ मे चाभी है ये कैसी आजादी है
झूठी मुस्कुराहट देखने के आदी हुए है लोग
निभाते सभी दुनियादारी है ये कैसे आजादी है
न जी सका अपने हिस्से का आसमान कभी
शर्मो हया में कैद यहां वफादारी है ये कैसी आजादी है
जीने के लिए थोड़ा सुकून कहाँ से लाऊँ रवि
रस्म निभाते हुए एक उम्र गुजारी है ये कैसी आजादी है
©Ravikant Dushe
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