जो सहजता से करो स्वीकार सारे भाव अपने,
तो कहो कैसे उठेगी कोई अंतः वेदना फिर!
हो गया जो मन तुम्हारा हर विकारों से परे तो
आ ही जायेगा तुम्हें चक्रव्यूहों को भेदना फिर!
तुम अकेले ही नहीं जिसके हज़ारों स्वप्न टूटे,
तुम अकेले ही नहीं जिसके भँवर में नाव छूटे!
तुम अकेले ही नहीं जिसको नियति ने डुबोया,
तुम अकेले ही नहीं जो खोते-खोते कुछ न पाया!
जो तुम्हारी कल्पना है साकार तुम ही कर सकोगे,
हो अगर मजधार में तो पार तुम ही कर सकोगे!
कोई तुमको थाम लेगा व्यर्थ ऐसा सोंचते हो,
मूढ़ हो जो बेवजह एक दूसरे को कोसते हो!
रिक्त मन में तुम सृजन का बीज तो उपजा के देखो,
प्रेम की सरिता में कोई गीत तो तुम गा के देखो!
हो उठेगी देखना जीवित नई संवेदना फिर,
आ ही जायेगा तुम्हें चक्रव्यूहों को भेदना फिर!!
©Meenakshi Raje
#Trees