वो आवारा बनकर भटकता है उन गलियों में जहाँ से उसकी | हिंदी शायरी

"वो आवारा बनकर भटकता है उन गलियों में जहाँ से उसकी मोहब्बत का जनाज़ा उठा था"

 वो आवारा बनकर भटकता है उन गलियों में
जहाँ से उसकी मोहब्बत का जनाज़ा उठा था

वो आवारा बनकर भटकता है उन गलियों में जहाँ से उसकी मोहब्बत का जनाज़ा उठा था

मोहब्बत का दर्द शायद झेल ना सका ।

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