मुक्तक :-  विदाई अजब है खेल कुदरत का बहन की इस जु | हिंदी कविता

"मुक्तक :-  विदाई अजब है खेल कुदरत का बहन की इस जुदाई में । बहुत रोया गले लगकर पिता भी तो विदाई में । पड़ी बेसुध उधर थी माँ विदा कर आज बेटी को - सिसक कर रो रहा दूल्हा  सुनो अपनी सगाई में ।। मुहब्बत कर लिया हमने जताना है जरा मुश्किल । भरी महफ़िल गिरे आँसूं छुपाना है जरा मुश्किल । मिलन की भी घड़ी आयी विदाई की घड़ी लेकर - जिऊँगा मैं भला कैसे बताना है जरा मुश्किल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मुक्तक :-  विदाई

अजब है खेल कुदरत का बहन की इस जुदाई में ।
बहुत रोया गले लगकर पिता भी तो विदाई में ।
पड़ी बेसुध उधर थी माँ विदा कर आज बेटी को -
सिसक कर रो रहा दूल्हा  सुनो अपनी सगाई में ।।

मुहब्बत कर लिया हमने जताना है जरा मुश्किल ।
भरी महफ़िल गिरे आँसूं छुपाना है जरा मुश्किल ।
मिलन की भी घड़ी आयी विदाई की घड़ी लेकर -
जिऊँगा मैं भला कैसे बताना है जरा मुश्किल ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :-  विदाई अजब है खेल कुदरत का बहन की इस जुदाई में । बहुत रोया गले लगकर पिता भी तो विदाई में । पड़ी बेसुध उधर थी माँ विदा कर आज बेटी को - सिसक कर रो रहा दूल्हा  सुनो अपनी सगाई में ।। मुहब्बत कर लिया हमने जताना है जरा मुश्किल । भरी महफ़िल गिरे आँसूं छुपाना है जरा मुश्किल । मिलन की भी घड़ी आयी विदाई की घड़ी लेकर - जिऊँगा मैं भला कैसे बताना है जरा मुश्किल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :-  विदाई


अजब है खेल कुदरत का बहन की इस जुदाई में ।

बहुत रोया गले लगकर पिता भी तो विदाई में ।

पड़ी बेसुध उधर थी माँ विदा कर आज बेटी को -

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