नासमझ थे वो, या हमे समझाना नही आया
आकिल पर पड़ा कील, निकालना नही आया
मोहब्बत की आतिश ने जोर पकड़ी
हम तो जले ही, तुम्हें बचाना नही आया
हम इस कौम के तुम उस कौम के
जज्बात था सयाना, फ़र्क बताना नही आया
बेइंतहा किया, बेशर्त किया, बेहिसाब किया
कर तो बैठे, मगर जताना नही आया....
आकिल- दिमाग
आतिश- आग
©Mahima Yadav..
part-1