तू प्रेम में मेरे राधा बन जा ,
कृष्ण तेरा मैं बन जाऊँ ।
निहारूँ जब खुद को दर्पण में,
तो छवि तेरी ही मैं पाऊं ।
होली खेलन आ जाओ मोहन,
अबके न मुझको तड़पाओ ।
रंग,अबीर लगे मेरे तन पर ,
प्रेम मेें तेरे रंग जाऊँ ।
भर पिचकारी जो तन पे मारो,
पुलकित मन मेरा हो जाए ।
कान्हा खेलो होली जी भर के ऐसे,
कि सुध बुध मेरी खो जाए।
रश्मि वत्स..।
मेरठ(उत्तर प्रदेश)
©Rashmi Vats
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