जलाकर चिता अपनो की, आग बुझाने निकला है। बिखरी हुई | हिंदी शायरी

"जलाकर चिता अपनो की, आग बुझाने निकला है। बिखरी हुई अस्थियों से, इंसान बनाने निकला है। जब रह गया अकेला, गवांकर साथ अपनो का, जाने किसके लिए फिर, मकान बनाने निकला है। ©Shailendra Shail"

 जलाकर चिता अपनो की, आग बुझाने निकला है।

बिखरी हुई अस्थियों से, इंसान बनाने निकला है।

जब रह गया अकेला, गवांकर साथ अपनो का,

जाने किसके लिए फिर, मकान बनाने निकला है।

©Shailendra Shail

जलाकर चिता अपनो की, आग बुझाने निकला है। बिखरी हुई अस्थियों से, इंसान बनाने निकला है। जब रह गया अकेला, गवांकर साथ अपनो का, जाने किसके लिए फिर, मकान बनाने निकला है। ©Shailendra Shail

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