Men walking on dark street वो आज रेत की तरह मानो हाथ से सरकता गया
मैं जिंदगी की उलझनों में और भी उलझता गया,
ख़्वाहिश उम्र भर की चंद लम्हों में सिमटती गई
मैं तन्हा था सफ़र में वो फिर तन्हा करता गया,
तुम दरिया की रवानी का न सबब पूछो मुझसे
आँख से दरिया निकला फिर स्याही बनता गया ,
बहकी हुई शामों से फिर रूबरू शायद न हो पाऊँ
मेरे अंदर का जलजला आज फिर मचलता गया,
आ बैठ पास मेरे तुझे फिर से जीने की वजह दे दूँ
क्यों आज मैं तेरी इस बेरुखी को फिर सुनता गया,
एक ख़्याल भर
©हर्ष चौधरी
#Emotional