मायूस भी हूँ मौन भी हूँ खुद से अभी अनजान भी हूँ रा | हिंदी कविता

"मायूस भी हूँ मौन भी हूँ खुद से अभी अनजान भी हूँ राह अकेली है डगर ज़रा विरान है खुद पर भरोसा है मगर मन में भावनाओं का अजब सा तूफ़ान है कलम चल रही है पर शब्दों के खेल से अभी अनजान हूँ खेल है शब्दों का या खेल है दुनिया का इससे ज़रा अबोध हूँ अबोध बालक हूँ मैं या नासमझ कोई मूर्ख हूँ ? मूर्ख हूँ तो क्यों हूँ ? करते तभी लोग मेरा उपहास है क्यों ? उपहास करना फ़ितरत है उनकी या मुझे में ही कोई कमी है ऐसी ! कमी है भी तो क्या कमी है ? और ये कमी है क्यों? न जाने मन मेरा सवालों के इस कटहरे में क्यों खड़ा है यूँ ? ©Nitesh sinwal"

 मायूस भी हूँ
मौन भी हूँ
खुद से अभी अनजान भी हूँ
राह अकेली है
डगर ज़रा विरान है
खुद पर भरोसा है
मगर मन में भावनाओं का अजब सा तूफ़ान है
कलम चल रही है
पर शब्दों के खेल से अभी अनजान हूँ
खेल है शब्दों का या खेल है 
दुनिया का इससे ज़रा अबोध हूँ
अबोध बालक हूँ मैं
या नासमझ कोई मूर्ख हूँ ?
मूर्ख हूँ तो क्यों हूँ ?
करते तभी लोग मेरा उपहास है क्यों ?
उपहास करना फ़ितरत है उनकी
या मुझे में ही कोई कमी है ऐसी ! 
कमी है भी तो क्या कमी है ?
और ये कमी है क्यों?
न जाने मन मेरा सवालों के
इस कटहरे में क्यों खड़ा है यूँ ?

©Nitesh sinwal

मायूस भी हूँ मौन भी हूँ खुद से अभी अनजान भी हूँ राह अकेली है डगर ज़रा विरान है खुद पर भरोसा है मगर मन में भावनाओं का अजब सा तूफ़ान है कलम चल रही है पर शब्दों के खेल से अभी अनजान हूँ खेल है शब्दों का या खेल है दुनिया का इससे ज़रा अबोध हूँ अबोध बालक हूँ मैं या नासमझ कोई मूर्ख हूँ ? मूर्ख हूँ तो क्यों हूँ ? करते तभी लोग मेरा उपहास है क्यों ? उपहास करना फ़ितरत है उनकी या मुझे में ही कोई कमी है ऐसी ! कमी है भी तो क्या कमी है ? और ये कमी है क्यों? न जाने मन मेरा सवालों के इस कटहरे में क्यों खड़ा है यूँ ? ©Nitesh sinwal

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