पूछते हो मुझ से तुम तुमको कि कितना दर्द है
मैं सरापा दिल हूँ दिल मेरा सरापा दर्द है
झूठे वादे करते हैं सब मैंने तो ख़ासे किए
पर निभाए ही नहीं मुझको तो इसका दर्द है
ग़ज़ले लिखता हूँ तो ऐसा ये मुझे लगता है क्यूँ
सँभले से दिल में टूटे दिल के जैसा दर्द है
बाट लेते हैं ज़रा कम ही हो जाएगा भला
तेरा मेरा क्या ही करना ये हमारा दर्द है
खून से सींचा कभी मिट्टी पसीने से सनी
उसकी मेहनत का भी तो बर्बाद जाना दर्द है
~Shivam
एक ग़ज़ल
बह्र-2122 2122 2122 212
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