गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । | हिंदी कविता

"गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को । लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।। सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था... कल तक मेरी डाली में सुंदर वह फल फूल लगे । चिड़िया मेरी डाली को कहती सुंदर भवन लगे ।। इतना कुछ देखा जीवन में कैसे उसे भुलाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था ..... बच्चों के प्यारे पत्थर करते मुझमें घाव बड़े । पर मुझको तो फल देना जो थे मेरी छाँव खड़े ।। उनके कोमन मन को मैं अब कैसे भला दुखाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था .... महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 गीत :-

अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ ।
आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।।
अपने-पन से हरा-भरा था ...
आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को ।
लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।।
सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था...
कल तक मेरी डाली में सुंदर वह फल फूल लगे ।
चिड़िया मेरी डाली को कहती सुंदर भवन लगे ।।
इतना कुछ देखा जीवन में कैसे उसे भुलाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था .....
बच्चों के प्यारे पत्थर करते मुझमें घाव बड़े ।
पर मुझको तो फल देना जो थे मेरी छाँव खड़े ।।
उनके कोमन मन को मैं अब कैसे भला दुखाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था ....

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को । लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।। सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था... कल तक मेरी डाली में सुंदर वह फल फूल लगे । चिड़िया मेरी डाली को कहती सुंदर भवन लगे ।। इतना कुछ देखा जीवन में कैसे उसे भुलाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था ..... बच्चों के प्यारे पत्थर करते मुझमें घाव बड़े । पर मुझको तो फल देना जो थे मेरी छाँव खड़े ।। उनके कोमन मन को मैं अब कैसे भला दुखाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था .... महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-

अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ ।
आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।।
अपने-पन से हरा-भरा था ...
आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को ।
लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।।
सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ ।

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