White चल दिए हो छोड़कर किन्तु मन का क्या करूँ,
जेब में रूमाल तेरा इस कफन का क्या करूँ।
जिंदगी से भर गया मन किंतु मरना भी नहीं ,
बस तुम्हें ही ढूंढता है ऐसे मन का क्या करूं ।
जिस्म की चाहत न कोई थी मुहब्बत रूह से ,
उम्र भर पूजा है जिसको उस बदन का क्या करूं ।
हर जगह मांगी है मन्नत हर जगह सजदा किया ,
जब खुदा ही साथ न हो फिर भजन का क्या करूं ।
बंद कर ली आँख तेरी देखकर तस्वीर पर ,
लग गई न छूटती जो उस लगन का क्या करूं ।
तुमको गर जाना है तो फिर जाइए और शौक से ,
हो रहे हैं मुझसे जो शेर-ओ-सुखन का क्या करूं ।
दिल दुवाएं दे रहा है इससे ज्यादा क्या करे ,
खुद-ब-खुद जो हो रहा चिंतन मनन का क्या करूं ।
रोहित मिश्र
©Mishra Ji
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