शोर के बाजार में खामोशी बेचने निकला है नकाब पहन लु | हिंदी Poetry

"शोर के बाजार में खामोशी बेचने निकला है नकाब पहन लुटेरा घर को लूटने निकला है आज़ाद हो सर्कस का बूढ़ा शेर आज कैसे मालिक को मोहब्बत से खरोचने निकला है पहचान गए है शहर में शिकारी को सभी नए शहर नया शिकार दबोचने निकला है जुबान को भाने लगा है नए मांस का स्वाद अब इंसान ही इंसान को नोचने निकला है नए शेर अब भी लिखे जा रहे ज़िंदगी पर एक समझदार ज़िंदगी समझने निकला है ©AK Singh"

 शोर के बाजार में खामोशी बेचने निकला है
नकाब पहन लुटेरा घर को लूटने निकला है

आज़ाद हो सर्कस का बूढ़ा शेर आज कैसे
मालिक को मोहब्बत से खरोचने निकला है

पहचान गए है शहर में शिकारी को सभी
नए शहर नया शिकार दबोचने निकला है

जुबान को भाने लगा है नए मांस का स्वाद
अब इंसान ही इंसान को नोचने निकला है

नए शेर अब भी लिखे जा रहे ज़िंदगी पर
एक समझदार ज़िंदगी समझने निकला है

©AK Singh

शोर के बाजार में खामोशी बेचने निकला है नकाब पहन लुटेरा घर को लूटने निकला है आज़ाद हो सर्कस का बूढ़ा शेर आज कैसे मालिक को मोहब्बत से खरोचने निकला है पहचान गए है शहर में शिकारी को सभी नए शहर नया शिकार दबोचने निकला है जुबान को भाने लगा है नए मांस का स्वाद अब इंसान ही इंसान को नोचने निकला है नए शेर अब भी लिखे जा रहे ज़िंदगी पर एक समझदार ज़िंदगी समझने निकला है ©AK Singh

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