*मानुष कितना पीछे है* *तृष्णा कितनी आगे है ।* *तृप | हिंदी Poetry

"*मानुष कितना पीछे है* *तृष्णा कितनी आगे है ।* *तृप्त करे सो ठहरी तृष्णा* *मनुज जा रहा भागे तृष्णा।।* *माया लिप्सा मन में बैठी* *माया मन ना जाने है।* *इक धन तोड़े रिश्ते को* *इक धन रिश्ता पहचाने है।।* *तृष्णा माया मिल करके* *यह मनवा भ्रमित नचाए है ।* *आग लगा दी उस पूंजी में* *जो पुरखे रहे बचाए है।।* *छोड़ - छाड़ के सब संबंधों को* *खोज रहे सब प्रचुर धनम् को ।* *कौन -कहां अब कहता है ?* *कि संतोषम है परम सुखम को।।* ©Rishi Ranjan"

 *मानुष कितना पीछे है*
*तृष्णा कितनी आगे है ।*
*तृप्त करे सो ठहरी तृष्णा* 
*मनुज जा रहा भागे तृष्णा।।*

*माया लिप्सा मन में बैठी* 
*माया मन ना जाने है।*
*इक धन तोड़े रिश्ते को* 
*इक धन रिश्ता पहचाने है।।*

*तृष्णा माया मिल करके*
*यह मनवा भ्रमित नचाए है ।*
*आग लगा दी उस पूंजी में* 
*जो पुरखे रहे बचाए है।।*
 
*छोड़ - छाड़ के सब संबंधों को* 
*खोज रहे सब प्रचुर धनम् को ।*
*कौन -कहां अब कहता है ?*
*कि संतोषम है परम सुखम को।।*

©Rishi Ranjan

*मानुष कितना पीछे है* *तृष्णा कितनी आगे है ।* *तृप्त करे सो ठहरी तृष्णा* *मनुज जा रहा भागे तृष्णा।।* *माया लिप्सा मन में बैठी* *माया मन ना जाने है।* *इक धन तोड़े रिश्ते को* *इक धन रिश्ता पहचाने है।।* *तृष्णा माया मिल करके* *यह मनवा भ्रमित नचाए है ।* *आग लगा दी उस पूंजी में* *जो पुरखे रहे बचाए है।।* *छोड़ - छाड़ के सब संबंधों को* *खोज रहे सब प्रचुर धनम् को ।* *कौन -कहां अब कहता है ?* *कि संतोषम है परम सुखम को।।* ©Rishi Ranjan

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