रोता नहीं हर कोई सरेआम ज़माने में। टूटता हर कोई है | हिंदी विचार

"रोता नहीं हर कोई सरेआम ज़माने में। टूटता हर कोई है मगर, ज़ख़्म दिखाता नहीं हर कोई, तेरे इन नकाबों के ठिकानों में। उम्मीद थी की मिलेगा कोई सच्चा हमसफर, पर सब बेवफ़ा मिले तेरे गरीब खानों में। ©Praveen Kumar"

 रोता नहीं हर कोई सरेआम ज़माने में।
टूटता हर कोई है मगर,
ज़ख़्म दिखाता नहीं हर कोई,
तेरे इन नकाबों के ठिकानों में।
उम्मीद थी की मिलेगा कोई सच्चा हमसफर,
पर सब बेवफ़ा मिले तेरे गरीब खानों में।

©Praveen Kumar

रोता नहीं हर कोई सरेआम ज़माने में। टूटता हर कोई है मगर, ज़ख़्म दिखाता नहीं हर कोई, तेरे इन नकाबों के ठिकानों में। उम्मीद थी की मिलेगा कोई सच्चा हमसफर, पर सब बेवफ़ा मिले तेरे गरीब खानों में। ©Praveen Kumar

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