तेरी यादों से काफ़ी दूर निकल आईं हूं फ़िर भी आंखों | हिंदी लव

"तेरी यादों से काफ़ी दूर निकल आईं हूं फ़िर भी आंखों में इक नमी सी रहती है कमबख्त वो इक ख़्वाब क्या टूटा अब तो नींदों से भी दुश्मनी सी लगती है महफिलों में ख़ामोशी महसूस करती हूं दिल को कोई गलत फहमी सी लगती है मेरी शायरियों में भी जिक्र तेरा ही आए छोड़िए कलम को तुझसे दोस्ती सी मालूम होती है की कातिब ए किस्मत ने मेरी तक़दीर में तुझे लिखा ही क्यूं था ग़र लिखना ही था तो क्या पूरी दुनिया में तू ही एक इंसान मिला था ©ekshayarkudi"

 तेरी यादों से काफ़ी दूर निकल आईं हूं
फ़िर भी आंखों में इक नमी सी रहती है
कमबख्त वो इक ख़्वाब क्या टूटा
अब तो नींदों से भी दुश्मनी सी लगती है
महफिलों में ख़ामोशी महसूस करती हूं
दिल को कोई गलत फहमी सी लगती है
मेरी शायरियों में भी जिक्र तेरा ही आए
छोड़िए कलम को तुझसे दोस्ती सी मालूम होती है

की कातिब ए किस्मत ने मेरी तक़दीर में तुझे लिखा ही क्यूं था
ग़र लिखना ही था तो क्या पूरी दुनिया में तू ही एक इंसान मिला था

©ekshayarkudi

तेरी यादों से काफ़ी दूर निकल आईं हूं फ़िर भी आंखों में इक नमी सी रहती है कमबख्त वो इक ख़्वाब क्या टूटा अब तो नींदों से भी दुश्मनी सी लगती है महफिलों में ख़ामोशी महसूस करती हूं दिल को कोई गलत फहमी सी लगती है मेरी शायरियों में भी जिक्र तेरा ही आए छोड़िए कलम को तुझसे दोस्ती सी मालूम होती है की कातिब ए किस्मत ने मेरी तक़दीर में तुझे लिखा ही क्यूं था ग़र लिखना ही था तो क्या पूरी दुनिया में तू ही एक इंसान मिला था ©ekshayarkudi

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