तेरी यादों से काफ़ी दूर निकल आईं हूं
फ़िर भी आंखों में इक नमी सी रहती है
कमबख्त वो इक ख़्वाब क्या टूटा
अब तो नींदों से भी दुश्मनी सी लगती है
महफिलों में ख़ामोशी महसूस करती हूं
दिल को कोई गलत फहमी सी लगती है
मेरी शायरियों में भी जिक्र तेरा ही आए
छोड़िए कलम को तुझसे दोस्ती सी मालूम होती है
की कातिब ए किस्मत ने मेरी तक़दीर में तुझे लिखा ही क्यूं था
ग़र लिखना ही था तो क्या पूरी दुनिया में तू ही एक इंसान मिला था
©ekshayarkudi
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