जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , | हिंदी कविता Video

" जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , उमा लिखती है ये जंग मेरी किसी से नहीं बस अपने आपसे है मैं इस नकाब पेशी से आज़ाद हो आईने सा साफ होना चाहती हूं मैं जो बात है सच बस वही रहना चाहती हूं मैं सिर के इस भारी बोझ को मर कर भी ये जाए तो मैं बस मरना चाहती हूं पर जब मैं ऐसा सोचती हूं तो वो हरकत कर जाती है जो खुद पागल मोही बनी बैठी है किसी के प्यार में वो मुझे कुछ और दिखा जाती है कभी हिम्मत कभी दिलासा कभी ढेर झूठ से पर्दा हटा वो प्यारा आनंद दिखा जाती है कुछ समय के लिए मैं उस गुमनाम पर खुबसूरत इलाके में घूमती हूं और फिर मैं वो हो जाती हूं जो मैं होना चाहती हूं जहां मैं बस कुछ नहीं चाहती हूं । - उमा सेलर ( Read Full Poem on Instagram ) ©Uma Sailar "

जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , उमा लिखती है ये जंग मेरी किसी से नहीं बस अपने आपसे है मैं इस नकाब पेशी से आज़ाद हो आईने सा साफ होना चाहती हूं मैं जो बात है सच बस वही रहना चाहती हूं मैं सिर के इस भारी बोझ को मर कर भी ये जाए तो मैं बस मरना चाहती हूं पर जब मैं ऐसा सोचती हूं तो वो हरकत कर जाती है जो खुद पागल मोही बनी बैठी है किसी के प्यार में वो मुझे कुछ और दिखा जाती है कभी हिम्मत कभी दिलासा कभी ढेर झूठ से पर्दा हटा वो प्यारा आनंद दिखा जाती है कुछ समय के लिए मैं उस गुमनाम पर खुबसूरत इलाके में घूमती हूं और फिर मैं वो हो जाती हूं जो मैं होना चाहती हूं जहां मैं बस कुछ नहीं चाहती हूं । - उमा सेलर ( Read Full Poem on Instagram ) ©Uma Sailar

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जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , उमा लिखती है

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