रोज लिखता हूं , लिखकर मिटाता हूं
तोड़कर खामोशी की चादरें, गीत गुनगुनाता हूं
धुन में रहता अपनी ही, अकेले मुस्कुराता हूं
जमाना है हराने में, अकेला ही भिड़ जाता हूं
सपने में परियों से मुलाकात, कोई नई बात नहीं
उनसे मिलकर कुछ सुनता हूं, कुछ सुनाता हूं
कुछ गजब के सबक, मिले हैं ठोकरों से
उनसे सीखता हूं , आगे बढ़ जाता हूं
बेचैनियां सी समाई रहती है मेरे खयालों में
उलझने का वक्त नहीं पार निकल जाता हूं
बंदिशे भी जकड़ लेती है, रोज-रोज हकीकत में
बुनकर मुकम्मल ताना-बाना, गीत गुनगुनाता हूं
मैं गीत गुनगुनाता हूं___ 😊 😊
#alone