वो शक्श... जो सबको मनाना तो जानता है मगर किसी से र | हिंदी कविता

"वो शक्श... जो सबको मनाना तो जानता है मगर किसी से रूठता नही क्या उसे कभी बुरा नही लगता होगा? या उसे रूठना आता नही होगा? शायद वो जानता है की उसे मनाने कोई आयेगा नही! शायद उसे लगता है कि उसके रूठ जाने की परवाह किसी को होगी नही! कहने को अपने तो बहुत होंगे उसके जीवन में भी मगर... शायद उसने महसूस किया होगा कि किसी को उसकी इतनी फ़िक्र होगी नही! रूठा तो होगा कभी वो भी मगर किसी ने उसकी खामोशी की वजह जान ने की कोशिश तक शायद की नही! और तब उसने जाना होगा कि उसकी खामोशी से किसी को कोई फर्क पड़ता ही नही ! शायद तब ही उसने सीख लिया अपनी नाराज़गियों को छिपाना कि जब कोई उसकी कद्र करता ही नहीं! ©Pallavi Mamgain"

 वो शक्श...
जो सबको मनाना तो जानता है
मगर किसी से रूठता नही
क्या उसे कभी बुरा नही लगता होगा?
या उसे रूठना आता नही होगा?

शायद वो जानता है
की उसे मनाने कोई आयेगा नही!
शायद उसे लगता है
कि उसके रूठ जाने की परवाह किसी को होगी नही!
कहने को अपने तो बहुत होंगे
उसके जीवन में भी मगर...
शायद उसने महसूस  किया होगा
कि किसी को उसकी इतनी फ़िक्र होगी नही!
रूठा तो होगा कभी वो भी
मगर किसी ने उसकी खामोशी की वजह जान ने की 
कोशिश तक शायद की नही!
और तब उसने जाना होगा कि 
उसकी खामोशी से किसी को कोई फर्क पड़ता ही नही !
शायद तब ही उसने सीख लिया 
अपनी नाराज़गियों को छिपाना
कि जब कोई उसकी कद्र करता ही नहीं!

©Pallavi Mamgain

वो शक्श... जो सबको मनाना तो जानता है मगर किसी से रूठता नही क्या उसे कभी बुरा नही लगता होगा? या उसे रूठना आता नही होगा? शायद वो जानता है की उसे मनाने कोई आयेगा नही! शायद उसे लगता है कि उसके रूठ जाने की परवाह किसी को होगी नही! कहने को अपने तो बहुत होंगे उसके जीवन में भी मगर... शायद उसने महसूस किया होगा कि किसी को उसकी इतनी फ़िक्र होगी नही! रूठा तो होगा कभी वो भी मगर किसी ने उसकी खामोशी की वजह जान ने की कोशिश तक शायद की नही! और तब उसने जाना होगा कि उसकी खामोशी से किसी को कोई फर्क पड़ता ही नही ! शायद तब ही उसने सीख लिया अपनी नाराज़गियों को छिपाना कि जब कोई उसकी कद्र करता ही नहीं! ©Pallavi Mamgain


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