मुझे जाना कहा था, किस ओर बढ़ रहा हु.. अलग किस्मत | हिंदी कविता

"मुझे जाना कहा था, किस ओर बढ़ रहा हु.. अलग किस्मत बदलनी थी, लकीरों पर ठहर रहा हु... नाराज किसी से नहीं, मगर फिर भी खुद से लड़ रहा हु.. जब अभी तक कुछ हासिल ना किया ना जाने क्या और क्यू खोने से डर रहा हूं... इन अल्फाजों पर ना जाना मेरे दोस्तो.. गुजर कुछ और रही और बयान कुछ और कर रहा हु... ©Raj Pandey"

 मुझे जाना कहा था, 
किस ओर बढ़ रहा हु..
अलग किस्मत बदलनी थी,
लकीरों पर ठहर रहा हु...
नाराज किसी से नहीं,
मगर फिर भी खुद से लड़ रहा हु..
जब अभी तक कुछ हासिल ना किया
ना जाने क्या और क्यू खोने से डर रहा हूं...
इन अल्फाजों पर ना जाना मेरे दोस्तो..
गुजर कुछ और रही और बयान कुछ और कर रहा हु...

©Raj Pandey

मुझे जाना कहा था, किस ओर बढ़ रहा हु.. अलग किस्मत बदलनी थी, लकीरों पर ठहर रहा हु... नाराज किसी से नहीं, मगर फिर भी खुद से लड़ रहा हु.. जब अभी तक कुछ हासिल ना किया ना जाने क्या और क्यू खोने से डर रहा हूं... इन अल्फाजों पर ना जाना मेरे दोस्तो.. गुजर कुछ और रही और बयान कुछ और कर रहा हु... ©Raj Pandey

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