म्ध्य रात्रि मे... ये चान्द ओर गुलाब, मानो एक दुसर | हिंदी विचार

"म्ध्य रात्रि मे... ये चान्द ओर गुलाब, मानो एक दुसरे का दिदार करहे हो। चान्द कि रोशनी गुलाब की भावनो को महका रही हो गुलाब अपने सारे काते त्याग कर, चान्द कि चमक मे म्स्त हो रहा हो सच मे रात मे उजाला ही उजाला नजर आता है मन चहता है मेरी हर काली रात मे एसा ही उजाला हो ©Deepesh Kumar"

 म्ध्य रात्रि मे...
ये चान्द ओर गुलाब,
मानो एक दुसरे का दिदार करहे हो।
चान्द कि रोशनी गुलाब की भावनो को महका रही हो
गुलाब अपने सारे काते त्याग कर, चान्द कि चमक मे म्स्त हो रहा हो
सच मे रात मे उजाला ही उजाला नजर आता है
मन चहता है मेरी हर काली रात मे एसा ही उजाला हो

©Deepesh Kumar

म्ध्य रात्रि मे... ये चान्द ओर गुलाब, मानो एक दुसरे का दिदार करहे हो। चान्द कि रोशनी गुलाब की भावनो को महका रही हो गुलाब अपने सारे काते त्याग कर, चान्द कि चमक मे म्स्त हो रहा हो सच मे रात मे उजाला ही उजाला नजर आता है मन चहता है मेरी हर काली रात मे एसा ही उजाला हो ©Deepesh Kumar

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