जाते-जाते भी वो मुझ पर सितम कर गई। मायूसी भरी नजरो | हिंदी शायरी

"जाते-जाते भी वो मुझ पर सितम कर गई। मायूसी भरी नजरों से मुझे देख कर घर गई।। इरादा मेरा उसे भुलाने का था वो ज़ालिम अपनी नजरों से मेरी नजरों में इंतजार भर गई।। उसके लिए मैं बस एक बिता कल हूं लेकिन मेरे कल को तो वो मेरे आज के कर सर गई ।। मुझे हंसाना-रुलाना उसे अच्छे से आता है मुझ से मिलने आते आते लौट फिर गई।। उसकी क्या गलती थी, दीवाना तो मैं था शायद मुझे समझाने के लिए ही वो तन्हा कर गई।। एक सवाल आज भी मुझे सताता है वो समझदार लड़की कैसे मोहब्बत में पड़ गई।। वह बखूबी जानती थी इश्क में बंदीशेे नहीं होती जितने भी वादे थे सब को चली वो तोड़ कर गई।।"

 जाते-जाते भी वो मुझ पर सितम कर गई।
मायूसी भरी नजरों से मुझे देख कर घर गई।।

इरादा मेरा उसे भुलाने का था वो ज़ालिम 
अपनी नजरों से मेरी नजरों में इंतजार भर गई।।

उसके लिए मैं बस एक बिता कल हूं लेकिन 
मेरे कल को तो वो मेरे आज के कर सर गई ।।

मुझे हंसाना-रुलाना उसे अच्छे से आता है
मुझ से मिलने आते आते लौट फिर गई।।

उसकी क्या गलती थी, दीवाना तो मैं था शायद 
मुझे समझाने के लिए ही वो तन्हा कर गई।।

एक सवाल आज भी मुझे सताता है
वो समझदार लड़की कैसे मोहब्बत में पड़ गई।।

वह बखूबी जानती थी इश्क में बंदीशेे नहीं होती
जितने भी वादे थे सब को चली वो तोड़ कर गई।।

जाते-जाते भी वो मुझ पर सितम कर गई। मायूसी भरी नजरों से मुझे देख कर घर गई।। इरादा मेरा उसे भुलाने का था वो ज़ालिम अपनी नजरों से मेरी नजरों में इंतजार भर गई।। उसके लिए मैं बस एक बिता कल हूं लेकिन मेरे कल को तो वो मेरे आज के कर सर गई ।। मुझे हंसाना-रुलाना उसे अच्छे से आता है मुझ से मिलने आते आते लौट फिर गई।। उसकी क्या गलती थी, दीवाना तो मैं था शायद मुझे समझाने के लिए ही वो तन्हा कर गई।। एक सवाल आज भी मुझे सताता है वो समझदार लड़की कैसे मोहब्बत में पड़ गई।। वह बखूबी जानती थी इश्क में बंदीशेे नहीं होती जितने भी वादे थे सब को चली वो तोड़ कर गई।।

itajaaar bhar gayi

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