सैंकड़ों की आबादी फ़िर भी बरगद के नीचे क्यूँ है बेंच | हिंदी कविता

सैंकड़ों की आबादी
फ़िर भी बरगद के नीचे क्यूँ है बेंच खाली
भागदौड़ और सुकून के बीच चल रही कश्मकश।

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