घर की वीरानी सताती है मुझे तब तब, जब जब माँ तेरा द | हिंदी Shayari

"घर की वीरानी सताती है मुझे तब तब, जब जब माँ तेरा दीदार नही होता ।। ये खिड़कियों से आती हवा, कितनी सुहाती है मुझे तुम्हें मालूम है, ये उड़ते पर्दे, ये विंडचेम्प का संगीत, सब बेफिजूल लगने लगते है एक दम से, तुझे ना पा कर, और ये घर घर नहीं महज़ चार दिवारी लगने लगते है, और तब इस घर की वीरानी में, सारा शहर ही वीरान लगने लगता है मुझे ।।"

 घर की वीरानी सताती है मुझे तब तब,
जब जब माँ तेरा दीदार नही होता ।।

ये खिड़कियों से आती हवा,
कितनी सुहाती है मुझे तुम्हें मालूम है,
ये उड़ते पर्दे, ये विंडचेम्प का संगीत,
सब बेफिजूल लगने लगते है एक दम से,
तुझे ना पा कर,
और ये घर घर नहीं महज़ चार दिवारी लगने लगते है,
और तब इस घर की वीरानी में,
सारा शहर ही वीरान लगने लगता है मुझे ।।

घर की वीरानी सताती है मुझे तब तब, जब जब माँ तेरा दीदार नही होता ।। ये खिड़कियों से आती हवा, कितनी सुहाती है मुझे तुम्हें मालूम है, ये उड़ते पर्दे, ये विंडचेम्प का संगीत, सब बेफिजूल लगने लगते है एक दम से, तुझे ना पा कर, और ये घर घर नहीं महज़ चार दिवारी लगने लगते है, और तब इस घर की वीरानी में, सारा शहर ही वीरान लगने लगता है मुझे ।।

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