चलो चुप हो जाएँ
""""""""""""""""""""""
बाहर मचा हुआ है शोर, चलो चुप हो जाएँ,
आफत पसरी है चहुँ ओर, चलो चुप हो जाएँ।
जिसके जिम्मे में था, उसे संभाले रखने की,
वही निकला शातिर चोर, चलो चुप हो जाएँ।
महफुज है समझने की, बड़ी कीमत पड़ी देनी,
दर अदालती हुई कमजोर, चलो चुप हो जाएँ।
कोई भी अछुता न रहा, हुक्मरानों की घातों से,
अघातें की उसने बड़ी जोर, चलो चुप हो जाएँ।
एकाकीपन के आलम में, आती है बहुत याद,
हूक उठती है पोर-पोर, चलो चुप हो जाएँ।
"मृत्युंजय" जमाना कातिल है, रूहों से बहे सैलाब,
जाने कब तक होवेगी भोर ? चलो चुप हो जाएँ।
©Tarakeshwar Dubey
चुप हो जाएं
#ujala