धरती कि हरी चुनरियां
रंग दी लहूं से केसरिया
सच्चे वीर सपूतों ने
वार दी सारी उमरिया।
हंसते-हंसते चढ़े सूली पर
छोड़ दी सुख कि नगरिया
वो तो है देवता
दे के जवानी अपनी
सिंची आजादी कि डगरिया।
हर माँ जनना चाहे
'भगत' लाल तेरे जैसा
साथी हो तो सुखदेव-राजगुरु
तुम जैसा,
हंस कर झूल गये तुम तो
रोते-रोते भीग गई मौत कि चदरिया।
जीना सिखाते है सभी
मरना सिखाया तुमने है
बलिदान तुम्हारा 'अभिमन्युओं'
भूलेगा ना ये देश कभी।
©Suvesh Shukla 'CHANDRA'
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