ग़ज़ल :-
रूप पल-पल कभी वो बदलते नहीं ।
साथ दे कर दगा दोस्त करते नहीं ।।
नेक इंसान बन दोस्त लगता गले ।
मैल दिल में रखे लोग मिलते नहीं ।।
वो न इंसान है देख संसार में ।
धूल को जो चंदन समझते नहीं ।।
पाँव अपने जमाने अगर हो यहाँ ।
राह को देख पीछे वो हटते नहीं ।।
आसमां की अगर चाहतें जो डगर ।
बेड़ियों को वो बंधन समझते नहीं ।।
चाहतों को हमारी कभी तो समझ ।
बिन हमारे कभी तुम सँवरते नहीं ।।
थक गया है प्रखर राह चलकर तेरी ।
बात क्या आजकल तुम निकलते नहीं ।।
२६/०२/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
रूप पल-पल कभी वो बदलते नहीं ।
साथ दे कर दगा दोस्त करते नहीं ।।